Mashwara
Prayas Rokde
GENRE होठों से निकल कर रूह तक
पहुँचना है ये बात तो तय है।
सफर जो भी हो क्या फर्क़ है नभ
इत्मीनान ना सही तो बामुश्किल हो जाएँ।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा
क्यूँ न कभी गुच्छा बन
एक खूबसूरत ग़ज़ल हो जाएं।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा।
बंजर मैदानों पर मुरझा कर दम तोड़ देना
नहीं है अपनी फितरत
अब वक़्त है के मिल कर
एक लहलहाती फसल हो जाएँ।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा।
पन्ने-किताबों में पड़े-पड़े
ज़रा फर्जी से मालूम देते हैं
कभी होठों से छू ले कोई
तो हम भी दर असल हो जाएँ।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा।
दो पल रुक कर कोई राही
कभी हम पे भी तो सजदा करे।
कभी हम भी तो संजीदा हो कर
इबादत की नसल हो जाएँ।
.
बेहद मामूली से लगते,,
कुछ महीन खयालों ने सोचा
क्यूँ न कभी गुच्छा ब
एक खूबसूरत ग़ज़ल हो जाएं।
पहुँचना है ये बात तो तय है।
सफर जो भी हो क्या फर्क़ है नभ
इत्मीनान ना सही तो बामुश्किल हो जाएँ।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा
क्यूँ न कभी गुच्छा बन
एक खूबसूरत ग़ज़ल हो जाएं।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा।
बंजर मैदानों पर मुरझा कर दम तोड़ देना
नहीं है अपनी फितरत
अब वक़्त है के मिल कर
एक लहलहाती फसल हो जाएँ।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा।
पन्ने-किताबों में पड़े-पड़े
ज़रा फर्जी से मालूम देते हैं
कभी होठों से छू ले कोई
तो हम भी दर असल हो जाएँ।
बेहद मामूली से लगते
कुछ खयालों ने सोचा।
दो पल रुक कर कोई राही
कभी हम पे भी तो सजदा करे।
कभी हम भी तो संजीदा हो कर
इबादत की नसल हो जाएँ।
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बेहद मामूली से लगते,,
कुछ महीन खयालों ने सोचा
क्यूँ न कभी गुच्छा ब
एक खूबसूरत ग़ज़ल हो जाएं।
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